सीता नवमी 2025: जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में सीता नवमी का विशेष स्थान है। यह पर्व माता सीता के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत, पूजन और दान करने से सौभाग्य, शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

इस लेख में जानिए —
👉 सीता नवमी 2025 कब है
👉 पूजा का शुभ मुहूर्त
👉 पूजन की सही विधि
👉 सीता नवमी क्यों मनाते हैं


📅 सीता नवमी 2025 कब है – 5 या 6 मई?

इस वर्ष सीता नवमी 5 मई, सोमवार को मनाई जाएगी।

  • नवमी तिथि प्रारंभ: 5 मई को सुबह 7:36 बजे
  • नवमी तिथि समाप्त: 6 मई को सुबह 8:39 बजे

हालांकि माता सीता का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था और यह योग 5 मई को ही बन रहा है, इसलिए व्रत और पूजन 5 मई को ही किया जाएगा।


🕉️ सीता नवमी 2025: पूजा का शुभ मुहूर्त

  • पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय (अभिजीत मुहूर्त):
    🕐 सुबह 11:51 से 12:45 बजे तक
  • अमृत काल:
    🕐 दोपहर 12:20 से 12:45 बजे तक

👉 इन मुहूर्तों में पूजा करने से अधिक फल मिलता है।


🙏 सीता नवमी व्रत और पूजा विधि

  1. स्नान और संकल्प:
    • ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. पूजन स्थल की तैयारी:
    • एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता सीता व श्रीराम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
    • स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
  3. पूजा सामग्री अर्पण:
    • माता सीता को चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, साड़ी जैसे सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें।
    • इसके बाद फूल, रोली, चावल, धूप, दीप, फल और मिठाई चढ़ाएं।
  4. आरती और मंत्र जाप:
    • तिल के तेल या घी का दीपक जलाएं।
    • माता सीता के मंत्रों का 108 बार जाप करें और सीता चालीसा का पाठ करें।
    • शाम को भी आरती करें।

👉 व्रतधारी पूरे दिन उपवास रखते हैं और संध्या के बाद फलाहार या भोजन करते हैं।


📖 सीता नवमी क्यों मनाते हैं?

पौराणिक मान्यता के अनुसार —

  • राजा जनक ने संतान प्राप्ति हेतु यज्ञ भूमि तैयार करते समय धरती जोती थी।
  • उसी समय धरती से एक कन्या प्रकट हुई, जिसे माता सीता के रूप में जाना गया।
  • यह घटना वैशाख शुक्ल नवमी, मंगलवार, पुष्य नक्षत्र और मध्याह्न के योग में हुई थी।

👉 इस दिन को माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।


🌿 धार्मिक लाभ और महत्व

माता सीता की पूजा से धैर्य, संयम और त्याग जैसे गुणों की प्राप्ति होती है।

विवाहित महिलाएं इस व्रत से सौभाग्य प्राप्त करती हैं।

अविवाहित कन्याओं के लिए यह व्रत उत्तम वर की प्राप्ति हेतु लाभकारी माना गया है।

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