दिल्ली में एक अद्भुत बातचीत हुई, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ लगभग तीन घंटे तक एक गहन और विचारोत्तेजक संवाद किया। यह पॉडकास्ट एक ऐसी बातचीत थी जिसने न केवल मोदी के व्यक्तित्व की गहराइयों को उजागर किया, बल्कि जीवन और मृत्यु पर उनके अनूठे दार्शनिक विचारों को भी सामने लाया।
जीवन और मृत्यु पर दार्शनिक चिंतन
बातचीत के सबसे दिलचस्प क्षणों में से एक था जब फ्रिडमैन ने पीएम मोदी से पूछा, “क्या आपको मौत से डर लगता है?” इस सवाल पर मोदी ने ठहाके लगाते हुए एक प्रतिप्रश्न किया, “आप निश्चित रूप से किसे मानते हैं? जीवन या मृत्यु?”
फ्रिडमैन के “मृत्यु ही सबसे बड़ा सच है” कहने पर, प्रधानमंत्री ने एक गहरा दार्शनिक उत्तर दिया। उन्होंने कहा, “जीवन ही मृत्यु है। जो भी जीवित है, उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन जीवन लगातार विकसित होता रहता है। मृत्यु एक अटल सत्य है, तो हमें इससे डरने की क्या जरूरत?”
भारतीयता और सांस्कृतिक विरासत
मोदी ने अपनी ताकत के स्रोत पर भी महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि उनकी वास्तविक शक्ति उनके नाम में नहीं, बल्कि 1.4 अरब भारतीयों के समर्थन में निहित है। जब वे किसी विश्व नेता से मिलते हैं, तो वे सिर्फ नरेंद्र मोदी नहीं, बल्कि पूरे भारत के प्रतिनिधि होते हैं।
उन्होंने गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी की शिक्षाओं को याद करते हुए भारत की शांति-प्रियता पर जोर दिया। मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत संघर्ष की बजाय सामंजस्य को प्राथमिकता देता है।
सकारात्मक जीवन दृष्टिकोण
पॉडकास्ट में प्रधानमंत्री ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया – जीवन को अधिक उत्पादक, सार्थक और सकारात्मक बनाने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मृत्यु अटल है, लेकिन इसकी चिंता करने के बजाय हमें अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने में लगना चाहिए।
यह पॉडकास्ट न केवल एक साधारण बातचीत थी, बल्कि जीवन, मृत्यु, आध्यात्मिकता और भारतीय संस्कृति पर एक गहन दार्शनिक संवाद, जिसने श्रोताओं को गहराई से प्रभावित किया।