आज, 31 मार्च 2025 को नवरात्रि का दूसरा दिन है, जो मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए समर्पित होता है। उन्हें ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। उनकी सच्चे मन से पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और विद्यार्थियों और साधकों को विशेष लाभ मिलता है।
मां ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। नारद मुनि की प्रेरणा से उन्होंने हजारों वर्षों तक फल-फूल और फिर कंद-मूल खाकर तपस्या की।
कई वर्षों तक उन्होंने टूटे हुए बिल्व पत्र खाए, फिर बिना अन्न-जल के तपस्या की। उनकी कठोर साधना के कारण उनका शरीर अत्यंत निर्बल हो गया। जब उन्होंने पत्ते खाना भी छोड़ दिया, तो उन्हें अपर्णा कहा जाने लगा।
ऋषि-मुनियों की कृपा और शिवजी का आशीर्वाद
मां ब्रह्मचारिणी की घोर तपस्या से देव, ऋषि और मुनि प्रसन्न हुए। सभी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि भगवान शिव निश्चित रूप से उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे। उनकी व्रत कथा भक्तों को संयम, धैर्य और आत्मविश्वास का संदेश देती है।
पूजा का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से भक्तों में तप, संयम और अनुशासन की वृद्धि होती है। जो लोग ज्ञान, शिक्षा और आत्मिक शांति की प्राप्ति चाहते हैं, उनके लिए यह दिन विशेष फलदायी होता है। मां की पूजा करने से मनोबल बढ़ता है और सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
जय मां ब्रह्मचारिणी!