अयोध्या। इस वर्ष से राम जन्मोत्सव पर सूर्य तिलक की व्यवस्था स्थायी कर दी गई है। अब हर रामनवमी पर दोपहर 12:00 बजे सूर्य की किरणें रामलला के मस्तक पर अभिषेक करेंगी। यह प्रक्रिया अगले 20 वर्षों तक जारी रहेगी।
कैसे होगा सूर्य तिलक?
रुड़की के वैज्ञानिकों ने “सूर्य तिलक मैकेनिज्म” नामक एक अनूठी प्रणाली विकसित की है। इसके तहत—
✅ मंदिर के तीसरे तल पर विशेष दर्पण लगाए गए हैं।
✅ सूर्य की किरणें पहले दर्पण पर गिरेंगी और परावर्तित होकर 90° पर मुड़ेंगी।
✅ किरणें पीतल की पाइप में प्रवेश करेंगी और तीन विशेष लेंस से होकर गुजरेंगी।
✅ अंत में किरणें रामलला के मस्तक पर 75 मिमी के गोल आकार में पड़ेंगी।
✅ यह पूरी प्रक्रिया तीन से चार मिनट तक चलेगी।
बिना बिजली-बैटरी के काम करेगा तिलक मैकेनिज्म
रुड़की स्थित सीबीआरआई (केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने गियर-बेस्ड प्रणाली तैयार की है, जिसमें—
✔️ बिजली, बैटरी या लोहे का उपयोग नहीं किया गया।
✔️ सूर्य की प्राकृतिक किरणों को विशेष परावर्तक प्रणाली से गर्भगृह तक लाया जाएगा।
सूर्य तिलक का समय हर साल बढ़ेगा
भारतीय खगोलीय भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु के अनुसार—
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हर साल सूर्य तिलक की अवधि कुछ सेकंड बढ़ती जाएगी।
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19 साल बाद 2044 में तिलक की अवधि फिर से 2025 की तरह ही होगी।
इन मंदिरों में पहले से होता है सूर्य तिलक
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कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा)
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कुछ जैन मंदिर
हालांकि, राम मंदिर में अपनाई गई तकनीक अलग और अधिक उन्नत है।
क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व?
हिंदू परंपराओं में सूर्य को ऊर्जा और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। यह ऐतिहासिक तकनीकी प्रयोग भारतीय एस्ट्रोनॉमी और वास्तुशास्त्र के अद्भुत संगम का उदाहरण है।
अब हर रामनवमी पर सूर्य की किरणें स्वयं रामलला का तिलक करेंगी, जिससे यह पर्व और भी दिव्य और भव्य बन जाएगा।