ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनियाभर के ग्लेशियरों (हिमनदों) का तेजी से पिघलना जारी है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और विश्व ग्लेशियर निगरानी सेवा (डब्ल्यूजीएमएस) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2022 से 2024 के बीच ग्लेशियरों ने अब तक का सबसे अधिक बर्फ खोई है। यह संकट पानी की कमी, समुद्र के बढ़ते स्तर और प्राकृतिक आपदाओं का बड़ा कारण बन रहा है।
ग्लेशियरों का रिकॉर्ड पिघलना: चौंकाने वाले आंकड़े
-
1975 से अब तक दुनियाभर के ग्लेशियरों ने 9,000 अरब टन बर्फ खो दी है।
-
यह इतनी मात्रा है कि पूरे जर्मनी के ऊपर 25 मीटर मोटी बर्फ की चादर बिछ सकती है।
-
2024 लगातार तीसरा वर्ष था जब दुनिया के सभी 19 प्रमुख ग्लेशियर क्षेत्रों ने बर्फ खोई।
-
2000 से 2023 के बीच ग्लेशियरों की 5% बची हुई बर्फ भी खत्म हो गई, और मध्य यूरोप के 40% ग्लेशियर पूरी तरह से गायब हो चुके हैं।
ग्लेशियरों को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का कदम
ग्लेशियरों के इस गंभीर संकट को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतरराष्ट्रीय ग्लेशियर संरक्षण वर्ष घोषित किया। इस पहल में यूनेस्को, डब्ल्यूएमओ और 35 देशों के 200 से अधिक संगठन शामिल हैं।
पहला ‘सर्वश्रेष्ठ ग्लेशियर पुरस्कार’
ग्लेशियर संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने ‘सर्वश्रेष्ठ ग्लेशियर पुरस्कार’ की शुरुआत की है। 2024 का पहला विजेता अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित दक्षिण कैस्केड ग्लेशियर बना।
ग्लेशियरों का पिघलना क्यों है खतरनाक?
-
समुद्र का जलस्तर बढ़ना:
ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे तटीय शहरों के डूबने का खतरा बढ़ गया है। -
पानी की किल्लत:
हिमालय और आल्प्स जैसे ग्लेशियर करोड़ों लोगों के लिए पानी का स्रोत हैं। इनके पिघलने से जल संकट बढ़ेगा। -
प्राकृतिक आपदाओं का खतरा:
ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर झील विस्फोट (GLOF) जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।
निष्कर्ष
ग्लेशियरों का पिघलना केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व के लिए भी गंभीर खतरा है। जलवायु परिवर्तन को रोकने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे। अन्यथा, अगली पीढ़ी को पानी और जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।