बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने CGMSC (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड) के 411 करोड़ रुपए के मेडिकल उपकरण खरीदी घोटाले में चार आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस सिन्हा ने सुनवाई के दौरान कहा कि ACB-EOW की प्रारंभिक जांच में इनकी भूमिका सामने आई है, इसलिए अग्रिम जमानत देना उचित नहीं होगा।
कैसे हुआ 411 करोड़ का घोटाला?
स्वास्थ्य विभाग ने 2021 में मेडिकल उपकरण और मशीनों की खरीदी शुरू की थी। महज 26-27 दिनों में CGMSC ने 411 करोड़ की खरीदी के आदेश जारी कर दिए। आरोप है कि जरूरत का सही आकलन किए बिना और भंडारण सुविधाओं की अनुपस्थिति में भारी मात्रा में मशीनें खरीदी गईं। रीएजेंट का रखरखाव भी सुनिश्चित नहीं किया गया, जिससे राज्य को भारी नुकसान हुआ।
13 गुना महंगी दरों पर की गई खरीदी
जांच में सामने आया कि कुछ मेडिकल उपकरणों को बाजार मूल्य से 13 गुना महंगे दाम पर खरीदा गया। उदाहरण के लिए, 8.50 रुपए की EDTA ट्यूब को 2352 रुपए में खरीदा गया। आरोप है कि CGMSC के अधिकारियों ने सप्लाई करने वाली कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी नियमों की अनदेखी की।
टेंडर में गड़बड़ी और मिलीभगत
ACB-EOW की जांच में पाया गया कि मोक्षित कॉर्पोरेशन, रिकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम्स, श्री शारदा इंडस्ट्रीज और सीबी कॉर्पोरेशन ने मिलकर टेंडर प्रक्रिया में हेरफेर की। चारों कंपनियों के उत्पाद, पैकेज और रेट एक जैसे थे, जिससे टेंडर प्रक्रिया में मिलीभगत का संदेह हुआ।
आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज
मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा की गिरफ्तारी के बाद, फर्म के प्रमोटर और कर्मचारी अविनेश कुमार, राजेश गुप्ता, अभिषेक कौशल और नीरज गुप्ता ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की। उन्होंने दलील दी कि FIR में उनका नाम नहीं है और वे केवल कंपनी के प्रमोटर या कर्मचारी हैं।
राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता डॉ. सौरभ पांडेय ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए बताया कि टेंडर में गड़बड़ी की पुष्टि हो चुकी है। हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए चारों आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।