बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) के बहुचर्चित प्लॉट घोटाले में तीन अभियंताओं को बरी कर दिया, जबकि कारोबारी रमेश झाबक की दोषसिद्धि बरकरार रखी। अदालत ने उनकी जमानत निरस्त कर दी और बाकी बची हुई सजा काटने के लिए जेल भेजने का आदेश दिया।
जानें क्या था मामला
यह मामला वर्ष 1996 का है। आरोप था कि आरडीए अधिकारियों ने नियमों को दरकिनार कर रमेश झाबक को दो प्लाट (ई-1 और ई-15) आवंटित किए। न तो नीलामी की गई और न ही तय प्रक्रिया का पालन। इससे प्राधिकरण को लाखों का नुकसान हुआ। लोकायुक्त ने 1997 में केस दर्ज कर विशेष अदालत में चालान पेश किया था
स्पेशल जज (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) ने 26 जुलाई 2000 को तत्कालीन उप अभियंता वेद प्रकाश सिन्हा, मुख्य कार्यपालन अधिकारी पी.एल. गजभिये और सहायक अभियंता एच.एस. गुप्ता को दोषी ठहराया था। व्यापारी रमेश झाबक को भी साजिश (धारा 120-बी आईपीसी) का दोषी पाया गया था।
हाईकोर्ट की एकलपीठ न्यायमूर्ति संजय एस. अग्रवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि तीनों अभियंता सिर्फ तत्कालीन चेयरमैन नरसिंह मंडल (स्वर्गीय) के आदेश का पालन कर रहे थे। इसलिए उन्हें भ्रष्टाचार या साजिश का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने अभियंताओं के बरी होने पर मुहर लगाई और उनकी जमानत व मुचलके खत्म कर दिए।
वहीं कारोबारी रमेश झाबक के खिलाफ फैसले को बरकरार रखा गया। अदालत ने कहा कि उन्होंने अवैध तरीके से प्लाट हासिल किए और प्राधिकरण को नुकसान पहुंचाया। उनकी दो साल की सजा और 1,000 रुपये जुर्माना यथावत रखा गया है।